चीज़ें अपनी जगह पे रहती हैं
तीरगी बस उन्हें छुपाती है
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दोहरी शहरियत
मैं अपने सारे सवालों के जानता हूँ जवाब
काला मोतिया
मैं दोस्त से न किसी दुश्मनी से डरता हूँ
घुटन
मैं दूर दूर से ख़ुद को उठा के लाता रहा
ये ख़ुद-नविश्त तो मुझ को अधूरी लगती है
चाहे हमारा ज़िक्र किसी भी ज़बाँ में हो
पिकासो का मशवरा
पहले तो जस्ता जस्ता भूल गया
अपनी तलाश में निकले
साअत-ए-हिज्र जब सताती है