कुछ लोग थे सफ़र में मगर हम-ज़बाँ न थे
है लुत्फ़ गुफ़्तुगू का जो अपनी ज़बाँ में हो
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Habib Jalib
Wasi Shah
Parveen Shakir
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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मैं ज़िंदा हूँ
रस्ते लपेट कर सभी मंज़िल पे लाए हैं
पिकासो का मशवरा
मैं अपने सारे सवालों के जानता हूँ जवाब
इब्तिदा मुझ में इंतिहा मुझ में
काला मोतिया
वरक़ वरक़ से नया इक जवाब माँगूँ मैं
चीज़ें अपनी जगह पे रहती हैं
ये ख़ुद-नविश्त तो मुझ को अधूरी लगती है
जब आईने दर-ओ-दीवार पर निकल आएँ
दोहरी शहरियत