रास्ता Poetry (page 2)
उसी की धुन में कहीं नक़्श पा गया है मिरा
ज़ाहिद फ़ारानी
चंद मोहमल सी लकीरें ही सही इफ़्शा रहूँ
ज़हीर सिद्दीक़ी
बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी
ज़हीर रहमती
बस्ती बस्ती जंगल जंगल घूमा मैं
ज़फ़र ताबिश
हो चुकी हिजरत तो फिर क्या फ़र्ज़ है घर देखना
ज़फ़र कलीम
घर से निकाले पाँव तो रस्ते सिमट गए
ज़फ़र कलीम
अपने ही सामने दीवार बना बैठा हूँ
ज़फ़र इक़बाल
कुछ सबब ही न बने बात बढ़ा देने का
ज़फ़र इक़बाल
थक के पत्थर की तरह बैठा हूँ रस्ते में 'ज़फ़र'
यूसुफ़ ज़फ़र
बे-तलब एक क़दम घर से न बाहर जाऊँ
यूसुफ़ ज़फ़र
रात चौपाल और अलाव मियाँ
यूसुफ़ तक़ी
तुम हर इक रंग में ऐ यार नज़र आते हो
वज़ीर अली सबा लखनवी
ऐसे बढ़े कि मंज़िलें रस्ते में बिछ गईं
वज़ीर आग़ा
दुख मैले आकाश का
वज़ीर आग़ा
सितारा तो कभी का जल-बुझा है
वज़ीर आग़ा
बादल छटे तो रात का हर ज़ख़्म वा हुआ
वज़ीर आग़ा
वो मेरे बालों में यूँ उँगलियाँ फिराता था
वसीम बरेलवी
उदासियों में भी रस्ते निकाल लेता है
वसीम बरेलवी
कुएँ जो पानी की बिन प्यास चाह रखते हैं
वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी
जौन से रस्ते वो हो निकले उधर पहरों तलक
वलीउल्लाह मुहिब
दुनिया अपनी मंज़िल पहुँची तुम घर में बेज़ार पड़े
वजद चुगताई
रहे वो ज़िक्र जो लब-हा-ए-आतिशीं से चले
वहीद अख़्तर
हम ने अपने आप से जब बात की
विश्वनाथ दर्द
अगर कुछ मोड़ रस्ते में न आते
विश्वनाथ दर्द
तमाम रात वो जागा किसी के वा'दे पर
वफ़ा मलिकपुरी
कब तक इस प्यास के सहरा में झुलसते जाएँ
उम्मीद फ़ाज़ली
जिस आईने में भी झाँका नज़र उसी से मिली
उमर अंसारी
उस ने ख़ुद फ़ोन पे ये मुझ से कहा अच्छा था
त्रिपुरारि
पागल वहशी तन्हा तन्हा उजड़ा उजड़ा दिखता हूँ
तरकश प्रदीप
देखें कितने चाहने वाले निकलेंगे
तारिक़ क़मर
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