प्रकाश Poetry (page 21)
ये रात काश इसी दिलकशी से ढलती रहे
हसन अख्तर जलील
इक भयानक तीरगी है रौशनी ऐ रौशनी
हसन अख्तर जलील
दिल की तरफ़ निगाह-ए-तग़ाफ़ुल रहा करे
हसन अख्तर जलील
आरज़ू की हमा-हामी और मैं
हसन अख्तर जलील
न आरज़ुओं का चाँद चमका न क़ुर्बतों के गुलाब महके
हसन अब्बास रज़ा
ग़म-ज़दा ज़िंदगी रही न रही
हरी मेहता
ये सानेहा भी बड़ा अजब है कि अपने ऐवान-ए-रंग-ओ-बू में
हनीफ़ अख़गर
दिल की मिरे बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ
हनीफ़ अख़गर
सब्ज़-खेतों से उमड़ती रौशनी तस्वीर की
हम्माद नियाज़ी
यक-ब-यक क्यूँ बंद दरवाज़े हुए
हामिदी काश्मीरी
रात काटी है जाग कर बाबा
हामिद सरोश
कोई नहीं था हुनर-आश्ना तुम्हारे बा'द
हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी
नियाज़-ओ-नाज़ का पैकर न अर्श पर ठहरा
हमीद कौसर
घर है तो दर भी होगा दीवार भी रहेगी
हमीद अलमास
ज़रा सोचो तो मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ है
हमदम कशमीरी
आप क्या आए कि रुख़्सत सब अंधेरे हो गए
हकीम नासिर
इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी
हकीम नासिर
सारे मामूलात में इक ताज़ा गर्दिश चाहिए
हकीम मंज़ूर
है इतना ही अब वास्ता ज़िंदगी से
हैरत गोंडवी
कूचा-ए-यार में हो रौशनी अपने दम की
हैदर अली आतिश
तुर्रा उसे जो हुस्न-ए-दिल-आज़ार ने किया
हैदर अली आतिश
शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ था
हैदर अली आतिश
ना-फ़हमी अपनी पर्दा है दीदार के लिए
हैदर अली आतिश
है जब से दस्त-ए-यार में साग़र शराब का
हैदर अली आतिश
रक़्क़ासा
हफ़ीज़ जालंधरी
इश्क़ में छेड़ हुई दीदा-ए-तर से पहले
हफ़ीज़ जालंधरी
हमारे अहद का मंज़र अजीब मंज़र है
हफ़ीज़ बनारसी
तेरे होने से
हबीब जालिब
शहर-ए-ज़ुल्मात को सबात नहीं
हबीब जालिब
'नूर-जहाँ'
हबीब जालिब
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