प्रकाश Poetry (page 23)

सुलगना अंदर अंदर मिस्रा-ए-तर सोचते रहना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

जुरअत-ए-इज़हार से रोकेगी क्या

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

अच्छी-ख़ासी रुस्वाई का सबब होती है

फ़े सीन एजाज़

मैं बोली तेरे लब पर है हँसी मेरी

फ़ौज़िया रबाब

दो तहों वाली सरगोशी

फर्रुख यार

सुनहरी दरवाज़े के बाहर

फ़ारूक़ नाज़की

न पानियों का इज़्तिरार शहर में

फ़ारूक़ मुज़्तर

जली हैं दर्द की शमएँ मगर अंधेरा है

फ़ारूक़ बख़्शी

ये वक़्त ज़िंदगी की अदाएँ भी ले गया

फ़ारूक़ अंजुम

जो बैठो सोचने हर ज़ख़्म-ए-दिल कसकता है

फ़ारूक़ अंजुम

यही है दौर-ए-ग़म-ए-आशिक़ी तो क्या होगा

फ़ारिग़ बुख़ारी

यादों का अजीब सिलसिला है

फ़ारिग़ बुख़ारी

वो रौशनी है कहाँ जिस के बाद साया नहीं

फ़ारिग़ बुख़ारी

हर एक रास्ते का हम-सफ़र रहा हूँ मैं

फ़ारिग़ बुख़ारी

नहीं है अब कोई रस्ता नहीं है

फ़रहत शहज़ाद

था पा-शिकस्ता आँख मगर देखती तो थी

फ़रहत क़ादरी

नए मिज़ाज की तश्कील करना चाहते हैं

फ़रहत नदीम हुमायूँ

कभी इस रौशनी की क़ैद से बाहर भी निकलो तुम

फ़रहत एहसास

चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है

फ़रहत एहसास

ना-रसाई

फ़रहत एहसास

रूह को तो इक ज़रा सी रौशनी दरकार है

फ़रहत एहसास

नहीं देखता दिन जिसे चश्म-ए-शब देखती है

फ़रहत एहसास

मैं शहरी हूँ मगर मेरी बयाबानी नहीं जाती

फ़रहत एहसास

मैं महफ़िल-बाज़ घबरा कर हुआ तन्हाई वाला

फ़रहत एहसास

मैं अपने रू-ए-हक़ीक़त को खो नहीं सकता

फ़रहत एहसास

खड़ी है रात अंधेरों का अज़दहाम लगाए

फ़रहत एहसास

हर इक जानिब उन आँखों का इशारा जा रहा है

फ़रहत एहसास

हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है

फ़रहत एहसास

हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है

फ़रहत एहसास

घर में चीज़ें बढ़ रही हैं ज़िंदगी कम हो रही है

फ़रहत एहसास

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