प्रकाश Poetry (page 24)

देखते ही देखते खोने से पहले देखते

फ़रहत एहसास

बुझ गए सारे चराग़-ए-जिस्म-ओ-जाँ तब दिल जला

फ़रहत एहसास

बा-मा'नियों से बच के मोहमल की राह पकड़ी

फ़रहत एहसास

मय-कदे के सिवा मिली है कहाँ

फ़रीद जावेद

छिपकिली

फ़रीद इशरती

तिरा ग़म रहे सलामत यही मेरी ज़िंदगी है

फ़ना बुलंदशहरी

न दहर में न हरम में जबीं झुकी होगी

फ़ना बुलंदशहरी

बहादुरी जो नहीं है तो बुज़दिली भी नहीं

फख्र ज़मान

वो जितने दूर हैं उतने ही मेरे पास भी हैं

फ़ैज़ुल हसन

हम ने सहरा को सजाया था गुलिस्ताँ की तरह

फ़ैज़ुल हसन

दरबार में अब सतवत-ए-शाही की अलामत

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ज़बानों का बोसा

फ़हमीदा रियाज़

शहसवारों ने रौशनी माँगी

फ़हमी बदायूनी

दोस्ती में न दुश्मनी में हम

फ़हीम जोगापुरी

लहू ने क्या तिरे ख़ंजर को दिलकशी दी है

एज़ाज़ अफ़ज़ल

दिलों के बीच बदन की फ़सील उठा दी जाए

एज़ाज़ अफ़ज़ल

याद उन की दिल में आई वो आसूदगी लिए

एजाज़ वारसी

तब हज़ारों अँधेरों से

एजाज़ रही

काले मौसमों की आख़िरी रात

एजाज़ रही

जो जा चुके हैं ग़ालिबन उतरें कभी ज़ीना तिरा

एजाज़ उबैद

उसी जन्नत जहन्नम में मरूँगा

एजाज़ गुल

मेरी मौत के मसीहा!

एजाज़ अहमद एजाज़

क्यूँ हर तरफ़ तू ख़्वार हुआ एहतिसाब कर

अहया भोजपुरी

बुझीं शमएँ तो दिल जलाए हैं

एहतिशाम हुसैन

ग़म में इक मौज सरख़ुशी की है

एहतिशाम हुसैन

दिल की रग़बत है जब आप ही की तरफ़

एहसान दानिश

मिरे कमरे में पूरी चाँदनी है

दिनेश नायडू

चाँद भी सितारों को साथ ले के चलता है

दिलकश सागरी

ख़ुद अपनी आग में सारे चराग़ जलते हैं

दिलावर अली आज़र

दूर के एक नज़ारे से निकल कर आई

दिलावर अली आज़र

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