रेग Poetry (page 4)

ये सोच कर कि तेरी जबीं पर न बल पड़े

शहज़ाद अहमद

तुझ पे जाँ देने को तय्यार कोई तो होगा

शहज़ाद अहमद

कहीं भी साया नहीं किस तरफ़ चले कोई

शहज़ाद अहमद

मंज़र गुज़िश्ता शब के दामन में भर रहा है

शहरयार

तुम अपनी सब्ज़ आँखें बंद कर लो

शहराम सर्मदी

नदी थी कश्तियाँ थीं चाँदनी थी झरना था

शहराम सर्मदी

ताक़-ए-जाँ में तेरे हिज्र के रोग संभाल दिए

शहनाज़ नूर

कभी जो मारका ख़्वाबों से रत-जगों का हुआ

शहनाज़ नूर

अगली रुत की नमाज़

शहनाज़ नबी

मिरी तरह से कहीं ख़ाक छानता होगा

शहनाज़ मुज़म्मिल

उसे जब भी देखा बहुत ध्यान से

शाहिदा तबस्सुम

कोई बच नहीं पाता ऐसा जाल बुनते हैं

शाहिद फ़रीद

किस क़दर है मुहीब सन्नाटा

शाहिद फ़रीद

कभी ग़मी के नाम पर कभी ख़ुशी की आड़ में

शाहिद फ़रीद

आस

शाहिद अख़्तर

वो बे-नियाज़ शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल गया

शाहिद अहमद शोएब

ऐ निगार-ए-ग़म-ओ-आलाम तिरी उम्र दराज़

शाहिद अहमद शोएब

ऐ निगार-ए-ग़म-ओ-आलाम तिरी उम्र दराज़

शाहिद अहमद शोएब

मचलते रहते हैं बिस्तर पे ख़्वाब मेरे लिए

शहबाज़ नदीम ज़ियाई

सफ़र का एक नया सिलसिला बनाना है

शहबाज़ ख़्वाजा

वो जिन की छाँव में पले बड़े हुए

शफ़ीक़ सलीमी

सवाल करता नहीं और जवाब उस की तलब

शफ़ीक़ सलीमी

भरी महफ़िल में तन्हाई का आलम ढूँड लेता है

शफ़ीक़ ख़लिश

अजीब रुत थी बरसती हुई घटाएँ थीं

शफ़ी अक़ील

कितने आसान रास्ते होते

शबनम शकील

ख़्वाब देखूँ कि रतजगे देखूँ

शबनम रूमानी

मैं रतजगों का सफ़ीर ठहरा था कितनी रातें गुज़ार आया

शब्बीर नकिद

सहरा की बे-आब ज़मीं पर एक चमन तय्यार किया

शायर लखनवी

मुद्दत से ढूँडती है किसी की नज़र मुझे

शाद अमृतसरी

एक किताब सिरहाने रख दी एक चराग़ सितारा किया

सऊद उस्मानी

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