रेग Poetry (page 8)

घर के ज़िंदाँ से उसे फ़ुर्सत मिले तो आए भी

हबीब जालिब

शहर-ए-जाँ की फ़सीलों से बाहर

गुलाम जीलानी असग़र

इश्क़ फ़ानी न हुस्न फ़ानी है

गोपाल मित्तल

अक्स की सूरत दिखा कर आप का सानी मुझे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

भीगी भीगी बरखा रुत के मंज़र गीले याद करो

ग़ौस सीवानी

फिर यही रुत हो ऐन मुमकिन है

ग़ालिब अयाज़

हुस्न के ज़ेर-ए-बार हो कि न हो

ग़ालिब अयाज़

हवा जब किसी की कहानी कहे है

गौतम राजऋषि

जाती रुत से प्यार करोगे

गौहर होशियारपुरी

सर-ए-सहरा-ए-दुनिया फूल यूँ ही तो नहीं खिलते

फ़ुज़ैल जाफ़री

तमाम अजनबी चेहरे सजे हैं चारों तरफ़

फ़िराक़ जलालपुरी

मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया

फ़ाज़िल जमीली

सुकून-ए-दिल के लिए इश्क़ तो बहाना था

फ़ातिमा हसन

कहो तो नाम मैं दे दूँ इसे मोहब्बत का

फ़ातिमा हसन

कुछ नया करने की ख़्वाहिश में पुराने हो गए

फ़सीह अकमल

ये कैसी रुत आ गई जुनूँ की

फ़ारूक़ नाज़की

औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूँ

फ़रहत ज़ाहिद

है वही एक मेरे सिवा और मैं

फ़रहत नदीम हुमायूँ

फिर वही मौसम-ए-जुदाई है

फ़रहत एहसास

क्या हो गया कैसी रुत पलटी मिरा चैन गया मिरी नींद गई

फ़रीद जावेद

सारे मंज़र दिलकश थे हर बात सुहानी लगती थी

फ़रह इक़बाल

दिल की काया ग़म ने वो पल्टी कि तुझ सा बन गया

फ़ानी बदायुनी

ये फ़स्ल उमीदों की हमदम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

रंग है दिल का मिरे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

'शोपीं' का नग़्मा बजता है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दरख़्त-ए-जाँ पर अज़ाब-रुत थी न बर्ग जागे न फूल आए

एज़ाज़ अहमद आज़र

नहीं शौक़-ए-ख़रीदारी में दौड़े जा रहा है

एजाज़ गुल

ज़माने ठीक है इन से बहुत हुए रौशन

दिनेश नायडू

महक कलियों की फूलों की हँसी अच्छी नहीं लगती

देवमणि पांडेय

हल्की हल्की बूँदें बरसीं पंछी करें कलोल

चमन लाल चमन

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