रेग Poetry (page 3)

इन्द्र-धनुष बन जाएँ

सुबोध लाल साक़ी

मैं यूँ तो ख़्वाब की ताबीर सोचता भी नहीं

सुबहान असद

ग़मगीन बे-मज़ा बड़ी तन्हा उदास है

सिदरा सहर इमरान

यहाँ वहाँ की बुलंदी में शान थोड़ी है

शुजा ख़ावर

यादों की रुत के आते ही सब हो गए हरे

शीन काफ़ निज़ाम

बदलती रुत का नौहा सुन रहा है

शीन काफ़ निज़ाम

वो गुनगुनाते रास्ते ख़्वाबों के क्या हुए

शीन काफ़ निज़ाम

मौज-ए-हवा से फूलों के चेहरे उतर गए

शीन काफ़ निज़ाम

कई शक्लों में ख़ुद को सोचता है

शीन काफ़ निज़ाम

दिल-ओ-निगाह के हुस्न-ओ-क़रार का मौसम

शाज़िया अकबर

संग-आबाद की एक दुकाँ

शाज़ तमकनत

यही सफ़र की तमन्ना यही थकन की पुकार

शाज़ तमकनत

वो नियाज़-ओ-नाज़ के मरहले निगह-ओ-सुख़न से चले गए

शाज़ तमकनत

ख़ुद अपना हाल दिल-ए-मुब्तला से कुछ न कहा

शाज़ तमकनत

अभी तो अच्छी लगेगी कुछ दिन जुदाई की रुत

शारिक़ कैफ़ी

उदास हैं सब पता नहीं घर में क्या हुआ है

शारिक़ कैफ़ी

तन से जब तक साँस का रिश्ता रहेगा

शारिक़ कैफ़ी

गुलज़ार में वो रुत भी कभी आ के रहेगी

शरीफ़ कुंजाही

गुलज़ार में वो रुत भी कभी आ के रहेगी

शरीफ़ कुंजाही

चमन लहक के रह गया घटा मचल के रह गई

शमीम करहानी

हसीन रुत है मगर कौन घर से निकलेगा

शमीम फ़ारूक़ी

उम्र गुज़र जाती है क़िस्से रह जाते हैं

शमीम अब्बास

तेरी नज़रों में तो अबरू में कमाँ ढूँडता हूँ

शकील जाज़िब

बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी है

शकील बदायुनी

हुआ न ख़त्म अज़ाबों का सिलसिला अब तक

शकील आज़मी

वहाँ की रौशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत

शकेब जलाली

शफ़क़ जो रू-ए-सहर पर गुलाल मलने लगी

शकेब जलाली

कनार-ए-आब खड़ा ख़ुद से कह रहा है कोई

शकेब जलाली

बेदार की निगाह में कल और आज क्या

शाइक़ मुज़फ़्फ़रपुरी

शिकस्ता छत में परिंदों को जब ठिकाना मिला

शहज़ाद नय्यर

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