रेग Poetry (page 7)

ये वस्ल की रुत है कि जुदाई का है मौसम

इफ़्तिख़ार राग़िब

जी चाहता है जीना जज़्बात के मुताबिक़

इफ़्तिख़ार राग़िब

छोड़ा न मुझे दिल ने मिरी जान कहीं का

इफ़्तिख़ार राग़िब

इक ख़ला, एक ला-इंतिहा और मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

ख़्वाब देखने वाली आँखें पत्थर होंगी तब सोचेंगे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

न कू-ए-यार में ठहरा न अंजुमन में रहा

इब्राहीम अश्क

कातिक का चाँद

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

इस हाल में जीते हो तो मर क्यूँ नहीं जाते

हुसैन ताज रिज़वी

तमाम शोबदे उस के कमाल उस के हैं

हसन रिज़वी

पहले सी अब बात कहाँ है

हसन रिज़वी

खिलने लगे हैं फूल और पत्ते हरे हुए

हसन रिज़वी

हवा के रुख़ पर चराग़-ए-उल्फ़त की लौ बढ़ा कर चला गया है

हसन रिज़वी

अब के यारो बरखा-रुत ने मंज़र क्या दिखलाए हैं

हसन रिज़वी

ख़ेमा-ए-याद

हसन नईम

इक भयानक तीरगी है रौशनी ऐ रौशनी

हसन अख्तर जलील

छाजों बरसती बारिश के बाद

हसन अब्बास रज़ा

विसाल-घड़ियों में रेज़ा रेज़ा बिखर रहे हैं

हसन अब्बास रज़ा

विसाल-घड़ियों में रेज़ा रेज़ा बिखर रहे हैं

हसन अब्बास रज़ा

आइए आसमाँ की ओर चलें

हनीफ़ तरीन

कोई भी रुत हो मिली है दुखों की फ़स्ल हमें

हनीफ़ कैफ़ी

बिखर के रेत हुए हैं वो ख़्वाब देखे हैं

हनीफ़ कैफ़ी

मंज़िल कहाँ है दूर तलक रास्ते हैं यार

हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी

है यक दो नफ़स सैर-ए-जहान-ए-गुज़राँ और

हमीद नसीम

ख़ुशबुओं की दश्त से हमसायगी तड़पाएगी

हकीम मंज़ूर

दरख़्तों पर परिंदे लौट आना चाहते हैं

हैदर क़ुरैशी

जो बस में है वो कर जाना ज़रूरी हो गया है

हैदर क़ुरैशी

फिर दिल से आ रही है सदा उस गली में चल

हबीब जालिब

कुछ लोग ख़यालों से चले जाएँ तो सोएँ

हबीब जालिब

कभी तो मेहरबाँ हो कर बुला लें

हबीब जालिब

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