वर्ष Poetry (page 12)

अलविदा'अ

बाक़र मेहदी

नए समय की कोयल

बक़ा बलूच

गो ज़रा तेज़ शुआएँ थीं ज़रा मंद थे हम

बकुल देव

रुख़-ए-हयात है शर्मिंदा-ए-जमाल बहुत

बख़्श लाइलपूरी

कहीं सुब्ह-ओ-शाम के दरमियाँ कहीं माह-ओ-साल के दरमियाँ

बद्र-ए-आलम ख़लिश

फल दरख़्तों से गिरे थे आँधियों में थाल भर

बद्र वास्ती

तब

बद्र मुनीरुद्दीन

कहें से कोई नुक़्ता आ जाए

अज़रा अब्बास

दुनिया के लिए ज़हर न खालें कोई हम भी

अज़लान शाह

हयूला

अज़ीज़ तमन्नाई

फिर नए साल की सरहद पे खड़े हैं हम लोग

अज़ीज़ नबील

सुब्ह-सवेरे ख़ुशबू पनघट जाएगी

अज़ीज़ नबील

जिस तरफ़ चाहूँ पहुँच जाऊँ मसाफ़त कैसी

अज़ीज़ नबील

'मीर'

अज़ीज़ लखनवी

भड़क उट्ठेंगे शो'ले एक दिन दुनिया की महफ़िल में

अज़ीज़ लखनवी

वो तीस साल से है फ़क़त बीस साल की

अज़ीज़ फ़ैसल

तू आया तो द्वार भिड़े थे दीप बुझा था आँगन का

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

दुनिया के जंजाल न पूछ

अज़ीज़ अन्सारी

चलते चलते साल कितने हो गए

अज़हर इनायती

अपना जैसा भी हाल रक्खा है

अज़हर अदीब

मोहब्बत का एक साल

अय्यूब ख़ावर

अश्क को दरिया बनाया आँख को साहिल किया

औरंगज़ेब

आइना है ख़याल की हैरत

औरंगज़ेब

वो मेरे नाले का शोर ही था शब-ए-सियह की निहायतों में

अतीक़ुल्लाह

कोई नहीं हमारा पुर्सान-ए-हाल अब के

अतीक़ुर्रहमान सफ़ी

कटी है उम्र यहाँ एक घर बनाने में

अतीक़ मुज़फ़्फ़रपुरी

फूल पर ओस है आरिज़ पे नमी हो जैसे

अतीक़ अंज़र

ख़्वाब की दिल्ली

अता आबिदी

एक जिला-वतन की वापसी

असरार-उल-हक़ मजाज़

ये साल तूल-ए-मसाफ़त से चूर चूर गया

असरार ज़ैदी

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