वर्ष Poetry (page 4)

मैं ने सिर्फ़ अपने नशेमन को सजाया साल भर

शुजा ख़ावर

दिन के पास कहाँ जो हम रातों में माल बनाते हैं

शुजा ख़ावर

हिज्र ओ विसाल

शोरिश काश्मीरी

हर लम्हा था सौ साल का टलता भी तो कैसे

शोहरत बुख़ारी

हमारे पाँव डरते हैं तुम्हारे साथ चलने में

शिवकुमार बिलग्रामी

यूसुफ़ ही ज़र-ख़रीदों में फ़िरोज़-बख़्त था

शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान

वक़्त आफ़ाक़ के जंगल का जवाँ चीता है

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

क़द्र की रात बड़ी प्यारी है

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

रक़ाबतों की तरह से हम ने मोहब्बतें बे-मिसाल की हैं

शीश मोहम्मद इस्माईल आज़मी

तिरे ख़याल को भी फ़ुर्सत-ए-ख़याल नहीं

शाज़िया अकबर

देखते हैं जब कभी ईमान में नुक़सान शैख़

शौक़ बहराइची

मश्क़

शारिक़ कैफ़ी

बहरूपिया

शारिक़ कैफ़ी

हैं अब इस फ़िक्र में डूबे हुए हम

शारिक़ कैफ़ी

उतर रहा था समुंदर सराब के अंदर

शरीक़ अदील

माना कि सई-ए-इश्क़ का अंजाम-कार क्या

शमीम करहानी

साल, पर साल, और फिर इस साल

शमीम अब्बास

उम्र का एक और साल गया

शकील जमाली

दरख़्तों पर कोई पत्ता नहीं था

शहज़ाद अहमद

जब उस की ज़ुल्फ़ में पहला सफ़ेद बाल आया

शहज़ाद अहमद

एक और साल गिरह

शहरयार

मिरे सुख़न पे इक एहसान अब के साल तो कर

शहराम सर्मदी

हम अपने इश्क़ की बाबत कुछ एहतिमाल में हैं

शहराम सर्मदी

वहशतों को भी अब कमाल कहाँ

शाहिदा हसन

सलीक़ा इश्क़ में मेरा बड़े कमाल का था

शाहिदा हसन

उजले मोती हम ने माँगे थे किसी से थाल भर

शाहिद मीर

कहीं कुछ नहीं होता

शाहिद माहुली

कुंज-ए-दिल में है जो मलाल उछाल

शाहिद कमाल

कर्ब चेहरे से मह-ओ-साल का धोया जाए

शाहिद कबीर

कोई बच नहीं पाता ऐसा जाल बुनते हैं

शाहिद फ़रीद

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