सबा Poetry (page 5)

खेल

शोरिश काश्मीरी

सुरमई रातों से छिनवा कर सहर की रौनक़ें

शोरिश काश्मीरी

वहम साबित हुए सब ख़्वाब सुहाने तेरे

शोहरत बुख़ारी

आओ कि अभी छाँव सितारों की घनी है

शोहरत बुख़ारी

तेरा चेहरा देख के हर शब सुब्ह दोबारा लिखती है

शोएब निज़ाम

कुछ अकेली नहीं मेरी क़िस्मत

शिबली नोमानी

मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे

ज़ौक़

लेते ही दिल जो आशिक़-ए-दिल-सोज़ का चले

ज़ौक़

लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले

ज़ौक़

फ़स्ल-ए-गुल साथ लिए बाग़ में क्या आती है

शैख़ अली बख़्श बीमार

बुतो ये शीशा-ए-दिल तोड़ दो ख़ुदा के लिए

शैख़ अली बख़्श बीमार

किस किस को अब रोना होगा जाने क्या क्या भूल गया

शाज़ तमकनत

उस के नाम

शौकत परदेसी

सब से पहले तो अर्ज़ मतला है

शमीम क़ासमी

चमन लहक के रह गया घटा मचल के रह गई

शमीम करहानी

न पूछ कब से ये दम घुट रहा है सीने में

शमीम जयपुरी

आज मेरी शब-ए-फ़ुर्क़त की सहर आई है

शमीम जयपुरी

आज जीने की कुछ उम्मीद नज़र आई है

शमीम जयपुरी

शहर-ए-जाँ में इज़तिराब-ए-सोज़-ए-फ़न देखेगा कौन

शमीम आज़र

तू ने क्या क्या न ऐ ज़िंदगी दश्त ओ दर में फिराया मुझे

शकेब जलाली

मौज-ए-सबा रवाँ हुई रक़्स-ए-जुनूँ भी चाहिए

शकेब जलाली

मौज-ए-ग़म इस लिए शायद नहीं गुज़री सर से

शकेब जलाली

क्या कहिए कि अब उस की सदा तक नहीं आती

शकेब जलाली

तू न आया तिरी यादों की हवा तो आई

शकेब बनारसी

लगा लिया था गले उस ने बा-वफ़ा कह कर

शकेब अयाज़

क्या उस की सिफ़त में गुफ़्तुगू है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

इश्क़ के शहर की कुछ आब-ओ-हवा और ही है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

ऐ दिल न कर तू फ़िक्र पड़ेगा बला के हाथ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

अब्र में याद-ए-यार आवे है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

साक़ी मय-ए-गुल-रंग मिरे लब से मिला देख

शैख़ मीर बख़्श मसरूर

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