शामियाना Poetry (page 1)

ख़ुद-कलामी ख़ातून-ए-ख़ाना की

ज़ेहरा अलवी

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ज़ीशान साहिल

दीवार-ओ-दर थे जान सराए निकल गए

ज़ीशान साजिद

'ज़की' हमारा मुक़द्दर हैं धूप के ख़ेमे

ज़की तारिक़

भरे तो कैसे परिंदा भरे उड़ान कोई

ज़की तारिक़

ऐ हम-सफ़र ये राह-बरी का गुमान छोड़

ज़फ़र सहबाई

बिजली गिरी है कल किसी उजड़े मकान पर

ज़फ़र इक़बाल

ख़ुदा-रा आ के मिरी लो ख़बर कहाँ हो तुम

यासीन ज़मीर

अल-अमाँ कि सूरज है मेरी जान के पीछे

याक़ूब यावर

हाँ वफ़ाओं का मेरी ध्यान भी था

विकास शर्मा राज़

अब कहाँ दर्द जिस्म-ओ-जान में है

विजय शर्मा अर्श

नई सहर है ये लोगो नया सवेरा है

वफ़ा मलिकपुरी

ख़ुद को हर रोज़ इम्तिहान में रख

उमैर मंज़र

ज़मीन फ़र्श फ़लक साएबान लिखते हैं

सय्यद मेराज जामी

हुआ नहीं है अभी मुन्हरिफ़ ज़बान से वो

सुल्तान सुकून

तन्हाइयों की बर्फ़ थी बिस्तर पे जा-ब-जा

सुल्तान अख़्तर

किसी के वास्ते जीता है अब न मरता है

सुल्तान अख़्तर

है धूप तेज़ कोई साएबान कैसे हो

सिया सचदेव

यहाँ वहाँ की बुलंदी में शान थोड़ी है

शुजा ख़ावर

चलो ये तो हादसा हो गया कि वो साएबान नहीं रहा

शुजा ख़ावर

जहाँ पे बसना है मुझ को अब वो जहान ईजाद हो रहा है

शहज़ाद रज़ा लम्स

मंज़िलों का निशान कब देगा

शीन काफ़ निज़ाम

उर्दू ज़बान

शायर अली शायर

सुकून-ए-क़ल्ब मयस्सर किसे जहान में है

शारिब मौरान्वी

सितारा टूट के बिखरा और इक जहान खुला

शमीम रविश

हम-जिंस अगर मिले न कोई आसमान पर

शकेब जलाली

कुछ यक़ीं सा गुमान सा कुछ है

शाहिद कमाल

गले लगाए रहा सब का ध्यान था इतना

शाद शाद नूही

मैं एक रात मोहब्बत के साएबान में था

साक़ी फ़ारुक़ी

तमाम क़ज़िया मकान भर था

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

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