सागर Poetry (page 19)

ख़त्म रातों-रात उस गुल की कहानी हो गई

इक़बाल साजिद

ये ज़मीं हम को मिली बहते हुए पानी के साथ

इक़बाल नवेद

न कोई ग़ैर न अपना दिखाई देता है

इक़बाल मिनहास

बगूलों की सफ़ें किरनों के लश्कर सामने आए

इक़बाल माहिर

समुंदर के किनारे इक समुंदर आदमियों का

इक़बाल हैदर

बर्ग ठहरे न जब समर ठहरे

इक़बाल अासिफ़

सुनो समुंदर की शोख़ लहरो हवाएँ ठहरी हैं तुम भी ठहरो

इक़बाल अशहर

रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया

इक़बाल अशहर

ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे-नवाई की

इक़बाल अशहर

दयार-ए-दिल में नया नया सा चराग़ कोई जला रहा है

इक़बाल अशहर

हद्द-ए-निगाह शाम का मंज़र धुआँ धुआँ

इक़बाल अंजुम

मोहब्बत

इंजिला हमेश

सीप मुट्ठी में है आफ़ाक़ भी हो सकता है

इंजील सहीफ़ा

वो डिग्री की बजाए मेम ले कर लौट आया है

इनाम-उल-हक़ जावेद

प्रोफ़ेसर ही जब आते हों हफ़्ता-वार कॉलेज में

इनाम-उल-हक़ जावेद

ये रंग बे-रंग सारे मंज़र हैं एक जैसे

इनाम कबीर

जुदा हो कर समुंदर से किनारा क्या बनेगा

इनआम आज़मी

जो चला आता है ख़्वाबों की तरफ़-दारी को

इनआम आज़मी

हैं घर की मुहाफ़िज़ मिरी दहकी हुई आँखें

इम्तियाज़ साग़र

मैं शजर हूँ और इक पत्ता है तू

इमरान हुसैन आज़ाद

जितने पानी में कोई डूब के मर सकता है

इमरान आमी

तुम्हारे जाते ही हर चश्म-ए-तर को देखते हैं

इमाम अाज़म

वक़्त वक़्त की बात है या दस्तूर है दुनिया का साईं

इलियास इश्क़ी

आदमी

इलियास बाबर आवान

मिरी आँखों को आँखों का किनारा कौन देगा

इफ़्तिख़ार क़ैसर

अपने ख़ूँ को ख़र्च किया है और कमाया शहर

इफ़्तिख़ार क़ैसर

जिला-वतन हूँ मिरा घर पुकारता है मुझे

इफ़्तिख़ार नसीम

अपना सारा बोझ ज़मीं पर फेंक दिया

इफ़्तिख़ार नसीम

मैं भी बे-अंत हूँ और तू भी है गहरा सहरा

इफ़्तिख़ार मुग़ल

साएबान

इफ़्तेख़ार जालिब

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