सागर Poetry (page 2)

नज़्म

ज़ीशान साहिल

मोहब्बत के रास्ते में

ज़ीशान साहिल

कल

ज़ीशान साहिल

हमें कहा जाएगा

ज़ीशान साहिल

एक लड़की ने आईना देखा

ज़ीशान साहिल

आँसू की वजह

ज़ीशान साहिल

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ज़ीशान साहिल

इस दश्त-ए-बे-पनाह की हद पर भी ख़ुश नहीं

ज़ीशान साहिल

मुझ से बिछड़ कर होगा समुंदर भी बेचैन

ज़ेब ग़ौरी

जाग के मेरे साथ समुंदर रातें करता है

ज़ेब ग़ौरी

छेड़ कर जैसे गुज़र जाती है दोशीज़ा हवा

ज़ेब ग़ौरी

चमक रहा है ख़ेमा-ए-रौशन दूर सितारे सा

ज़ेब ग़ौरी

शोला-ए-मौज-ए-तलब ख़ून-ए-जिगर से निकला

ज़ेब ग़ौरी

मैं तिश्ना था मुझे सर-चश्मा-ए-सराब दिया

ज़ेब ग़ौरी

खुली थी आँख समुंदर की मौज-ए-ख़्वाब था वो

ज़ेब ग़ौरी

जाग के मेरे साथ समुंदर रातें करता है

ज़ेब ग़ौरी

हो चुके गुम सारे ख़द्द-ओ-ख़ाल मंज़र और मैं

ज़ेब ग़ौरी

गहरी रात है और तूफ़ान का शोर बहुत

ज़ेब ग़ौरी

भड़कती आग है शो'लों में हाथ डाले कौन

ज़ेब ग़ौरी

बे-हिसी पर मिरी वो ख़ुश था कि पत्थर ही तो है

ज़ेब ग़ौरी

गुल-पोश बाम-ओ-दर हैं मगर घर में कुछ नहीं

ज़ौक़ी मुज़फ्फ़र नगरी

उस शाम को जब रूठ के में घर से चला था

ज़मीर काज़मी

नज़र में कैसा मंज़र बस गया है

ज़मान कंजाही

सिमटे हुए जज़्बों को बिखरने नहीं देता

ज़की तारिक़

आसूदा-ए-महफ़िल अभी दम भर न हुआ था

ज़हीर अहमद ताज

जज़्बा-ए-बे-कराना

ज़ाहिदा ज़ैदी

हिकायत-ए-गुरेज़ाँ

ज़ाहिदा ज़ैदी

क़तरा-ए-आब को कब तक मिरी धरती तरसे

ज़ाहिदा ज़ैदी

कल रात बहुत ज़ोर था साहिल की हवा में

ज़ाहिद मसूद

ज़ख़्म का जो मरहम होते हैं

ज़ाहिद कमाल

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