सागर Poetry (page 39)

लफ़्ज़ की छाँव में

आदिल मंसूरी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

फिर किसी ख़्वाब के पर्दे से पुकारा जाऊँ

आदिल मंसूरी

न कोई रोक सका ख़्वाब के सफ़ीरों को

आदिल मंसूरी

इबलाग़ के बदन में तजस्सुस का सिलसिला

आदिल मंसूरी

अब टूटने ही वाला है तन्हाई का हिसार

आदिल मंसूरी

कटी हुई है ज़मीं कोह से समुंदर तक

अदीम हाशमी

तमाम उम्र की तन्हाई की सज़ा दे कर

अदीम हाशमी

राहत-ए-जाँ से तो ये दिल का वबाल अच्छा है

अदीम हाशमी

जब बयाँ करोगे तुम हम बयाँ में निकलेंगे

अदीम हाशमी

ग़म के हर इक रंग से मुझ को शनासा कर गया

अदीम हाशमी

दर्द होते हैं कई दिल में छुपाने के लिए

अदीम हाशमी

तिरी दुनिया के नक़्शे में

अबरार अहमद

मेरे पास क्या कुछ नहीं

अबरार अहमद

क्या ख़बर कब से प्यासा था सहरा

आबिद आलमी

ख़्वाब में गर कोई कमी होती

आबिद आलमी

चट्टान के साए में खड़ा सोच रहा हूँ

अब्दुर्रहीम नश्तर

ख़ून जब अश्क में ढलता है ग़ज़ल होती है

अब्दुल मन्नान तरज़ी

हर आन नई शान है हर लम्हा नया है

अब्दुल मन्नान तरज़ी

हवा सनके ख़ारों की बड़ी तकलीफ़ होती है

अब्दुल हमीद अदम

किसी दश्त ओ दर से गुज़रना भी क्या

अब्दुल हमीद

इस से पहले कि हमें अहल-ए-जफ़ा रुस्वा करें

अब्दुल हमीद साक़ी

होंकते दश्त में इक ग़म का समुंदर देखो

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

दोस्त अहबाब से लेने न सहारे जाना

अब्दुल अहद साज़

फीकी ज़र्द दोपहर

अब्दुल अहद साज़

दिल-दही

अब्दुल अहद साज़

मिरी निगाहों पे जिस ने शाम ओ सहर की रानाइयाँ लिखी हैं

अब्दुल अहद साज़

मरने की पुख़्ता-ख़याली में जीने की ख़ामी रहने दो

अब्दुल अहद साज़

दूर से शहर-ए-फ़िक्र सुहाना लगता है

अब्दुल अहद साज़

बे-मसरफ़ बे-हासिल दुख

अब्दुल अहद साज़

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