सागर Poetry (page 4)

इक दिल में था इक सामने दरिया उसे कहना

यासमीन हबीब

ज़ंजीर ज़ुल्फ़-ए-सियाह समुंदर निगाह-ए-शोख़

यासीन ज़मीर

पलकों पे रुका क़तरा-ए-मुज़्तर की तरह हूँ

यासीन अफ़ज़ाल

लर्ज़ां तरसाँ मंज़र चुप

याक़ूब यावर

अल-अमाँ कि सूरज है मेरी जान के पीछे

याक़ूब यावर

हुसूल-ए-रिज़्क़ के अरमाँ निकालते गुज़री

याक़ूब तसव्वुर

वो राहबर तो नहीं था इआदा क्या करता

याक़ूब आरिफ़

ज़ात के रोग में

वज़ीर आग़ा

टीन का डिब्बा

वज़ीर आग़ा

जब आँख खुली मेरी

वज़ीर आग़ा

हथेली

वज़ीर आग़ा

आवेज़िश

वज़ीर आग़ा

वो परिंदा है कहाँ शब को चहकने वाला

वज़ीर आग़ा

तो मैं भी ख़ुश हूँ कोई उस से जा के कह देना

वसी शाह

दुख दर्द में हमेशा निकाले तुम्हारे ख़त

वसी शाह

ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है

वसीम बरेलवी

ये है तो सब के लिए हो ये ज़िद हमारी है

वसीम बरेलवी

तुझ को सोचा तो पता हो गया रुस्वाई को

वसीम बरेलवी

तहरीर से वर्ना मिरी क्या हो नहीं सकता

वसीम बरेलवी

सब ने मिलाए हाथ यहाँ तीरगी के साथ

वसीम बरेलवी

मुझे तो क़तरा ही होना बहुत सताता है

वसीम बरेलवी

मैं ये नहीं कहता कि मिरा सर न मिलेगा

वसीम बरेलवी

क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता

वसीम बरेलवी

कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी

वसीम बरेलवी

खुल के मिलने का सलीक़ा आप को आता नहीं

वसीम बरेलवी

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे

वसीम बरेलवी

है जिस की ठोकरों में आब-ए-ज़ि़ंदगी 'वामिक़'

वामिक़ जौनपुरी

रात के समुंदर में ग़म की नाव चलती है

वामिक़ जौनपुरी

जो दश्त ख़्वाबों में अक्सर दिखाई देता है

वामिक़ जौनपुरी

कल तलक जो था तसव्वुर अंजुमन-आराइयों का

वलीउल्लाह वली

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