सागर Poetry (page 18)

है समुंदर सामने प्यासे भी हैं पानी भी है

रम्ज़ अज़ीमाबादी

ऐब जो मुझ में हैं मेरे हैं हुनर तेरा है

रम्ज़ अज़ीमाबादी

किसी मरक़द का ही ज़ेवर हो जाएँ

राम रियाज़

रू-पोश आँख से कोई ख़ुशबू लिबास है

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

अजब नहीं है मुआलिज शिफ़ा से मर जाएँ

राकिब मुख़्तार

जीना है मुझे

राजेन्द्र मनचंदा बानी

वो जिसे अब तक समझता था मैं पत्थर, सामने था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

वो बात बात पे जी भर के बोलने वाला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

शफ़क़ शजर मौसमों के ज़ेवर नए नए से

राजेन्द्र मनचंदा बानी

कहाँ तलाश करूँ अब उफ़ुक़ कहानी का

राजेन्द्र मनचंदा बानी

फ़ज़ा कि फिर आसमान भर थी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

दिन को दफ़्तर में अकेला शब भरे घर में अकेला

राजेन्द्र मनचंदा बानी

चाँद की अव्वल किरन मंज़र-ब-मंज़र आएगी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

अक्स कोई किसी मंज़र में न था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

जिस को भी देखो तिरे दर का पता पूछता है

राजेश रेड्डी

किस की आँखों से गिरा है ये

राजा मेहदी अली ख़ाँ

टूटी हुई दीवार की तक़दीर बना हूँ

राज नारायण राज़

सभी अंधेरे समेटे हुए पड़े रहना

रईस सिद्दीक़ी

नतशे ने कहा

रईस फ़रोग़

काली रेत

रईस फ़रोग़

ऊपर बादल नीचे पर्बत बीच में ख़्वाब ग़ज़ालाँ का

रईस फ़रोग़

घर में सहरा है तो सहरा को ख़फ़ा कर देखो

रईस फ़रोग़

लहू आँखों में रौशन है ये मंज़र देखना अब के

राही कुरैशी

चैत का फूल

इक़तिदार जावेद

बगूला बन के समुंदर में ख़ाक उड़ाना थी

इक़बाल साजिद

वो दोस्त था तो उसी को अदू भी होना था

इक़बाल साजिद

संग-दिल हूँ इस क़दर आँखें भिगो सकता नहीं

इक़बाल साजिद

प्यासे के पास रात समुंदर पड़ा हुआ

इक़बाल साजिद

ख़ुश्क उस की ज़ात का सातों समुंदर हो गया

इक़बाल साजिद

ख़ौफ़ दिल में न तिरे दर के गदा ने रक्खा

इक़बाल साजिद

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