सागर Poetry (page 16)

बिस्तर बिछा के रात वो कमरे में सो गया

सादिक़

वो पीपल के तले टूटी हुई मेहराब का मंज़र

सदफ़ जाफ़री

शेर में साथ रवानी के मआनी भी तो भर

सदा अम्बालवी

ज़ुल्फ़ लहरा के फ़ज़ा पहले मोअत्तर कर दे

सदा अम्बालवी

जब भी पढ़ा है शाम का चेहरा वरक़ वरक़

साबिर ज़ाहिद

आँधी का कर ख़याल न तेवर हवा के देख

साबिर ज़ाहिद

हर एक मरहला-ए-दर्द से गुज़र भी गया

साबिर ज़फ़र

तमाम मोजज़े सारी शहादतें ले कर

साबिर वसीम

इन पत्थरों के शहर में दिल का गुज़र कहाँ

सबा इकराम

है जो दरवेश वो सुल्ताँ है ये मा'लूम हुआ

सबा अकबराबादी

वक़्त तो वक़्त है रुकता नहीं इक पल के लिए

सादुल्लाह शाह

ज़ालिम पे अज़ाब हो गया हूँ

रूही कंजाही

हवा-ए-जिंदगी भी कूचा-ए-क़ातिल से आती है

रोहित सोनी ‘ताबिश’

सवेरा

रियाज़ लतीफ़

मुस्तक़बिल की आँख

रियाज़ लतीफ़

ख़ला-नवर्दी

रियाज़ लतीफ़

तमाम ख़लियों में अक्सर सुनाई देता है

रियाज़ लतीफ़

सब ख़लाओं को ख़लाओं से भिगो सकता है

रियाज़ लतीफ़

खींच कर ले जाएगा अंजान महवर की तरफ़

रियाज़ लतीफ़

जाल रगों का गूँज लहू की साँस के तेवर भूल गए

रियाज़ लतीफ़

गुज़र चुके हैं बदन से आगे नजात का ख़्वाब हम हुए हैं

रियाज़ लतीफ़

क्यूँ अंधेरों का मुसाफ़िर है मुक़द्दर अपना

रिफ़अतुल क़ासमी

न फूल हूँ न सितारा हूँ और न शो'ला हूँ

रिफ़अत सरोश

शायद कभी ऐसा हो कुछ फ़िल्म सा कर जाऊँ

रज़्ज़ाक़ अरशद

इस समुंदर पे इक इल्ज़ाम ही धर जाना है

रज़्ज़ाक़ अादिल

मुझ को पाना है तो फिर मुझ में उतर कर देखो

राज़ी अख्तर शौक़

सलामत आए हैं फिर उस के कूचा-ओ-दर से

राज़ी अख्तर शौक़

सफ़र कठिन ही सही क्या अजब था साथ उस का

राज़ी अख्तर शौक़

जभी तो ज़ख़्म भी गहरा नहीं है

राज़ी अख्तर शौक़

आवार्गान-ए-शौक़ सभी घर के हो गए

राज़ी अख्तर शौक़

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