सागर Poetry (page 14)

ख़ाक-बस्ता हैं तह-ए-ख़ाक से बाहर न हुए

सलीम शुजाअ अंसारी

नए जहानों का इक इस्तिआरा कर के लाओ

सालिम सलीम

दश्त की वीरानियों में ख़ेमा-ज़न होता हुआ

सालिम सलीम

दालान में कभी कभी छत पर खड़ा हूँ मैं

सालिम सलीम

इक दरीचे की तमन्ना मुझे दूभर हुई है

सलीम सिद्दीक़ी

सदियों के रंग-ओ-बू को न ढूँडो गुफाओं में

सलीम शहज़ाद

रहा वो शहर में जब तक बड़ा दबंग रहा

सलीम शहज़ाद

नहीं है कोई दूसरा मंज़र चारों ओर

सलीम शहज़ाद

किसी रुत में जब मुस्कुराता है तू

सलीम शहज़ाद

सूरज ज़मीं की कोख से बाहर भी आएगा

सलीम शाहिद

क़ाइल करूँ किस बात से मैं तुझ को सितमगर

सलीम शाहिद

मंज़र मिरी आँखों में रहे दश्त-ए-सफ़र के

सलीम शाहिद

दर्द की ख़ुश्बू से सारा घर मोअ'त्तर हो गया

सलीम शाहिद

यहाँ वहाँ कुछ लफ़्ज़ हैं मेरे नज़्में ग़ज़लें तेरी हैं

सलीम मुहीउद्दीन

अक्स हैरान है आइना कौन है

सलीम मुहीउद्दीन

सरासर नफ़ा था लेकिन ख़सारा जा रहा है

सलीम कौसर

ख़ुशबू सा कोई दिन तो सितारा सी कोई शाम

सलीम फ़िगार

सहराओं में जा पहुँची है शहरों से निकल कर

सलीम बेताब

देखने के लिए इक शर्त है मंज़र होना

सलीम अहमद

हवा की चितवन जैसे नैन

सलाहुद्दीन महमूद

जुर्म-ए-इज़हार-ए-तमन्ना आँख के सर आ गया

सज्जाद बाक़र रिज़वी

लहर उस आँख में लहराई जो बे-ज़ारी की

सज्जाद बलूच

लहर इस आँख में लहराई जो बे-ज़ारी की

सज्जाद बलूच

इक दर्द सब के दर्द का मज़हर लगा मुझे

सज्जाद बाबर

हमारी रूह का नग़्मा कहाँ है?

साजिदा ज़ैदी

तारे सारे रक़्स करेंगे चाँद ज़मीं पर उतरेगा

साजिद हाश्मी

ज़हर में डूबी हुई सुर्ख़ हिकायात में गुम

साजिद हमीद

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