सागर Poetry (page 15)

यादों की गूँज ज़ेहन से बाहर निकालिए

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

सीने की आग आतिश-ए-महशर हो जिस तरह

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

लहजे का रंग लफ़्ज़ की ख़ुश्बू भी देख ले

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

अब क्या गिला करें कि मुक़द्दर में कुछ न था

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

लहु नज़्र दे रही है हयात

साहिर लुधियानवी

तैरेगा फ़ज़ा में जो समुंदर न मिलेगा

साहिर होशियारपुरी

कल तलक सहरा बसा था आँख में

साहिल अहमद

धूप थी साया उठा कर रख दिया

साहिल अहमद

आईना मेरा बदल कर ले गया

साहिल अहमद

हर रात का ख़्वाब

सहबा अख़्तर

हम क़त्ल कब हुए ये पता ही नहीं चला

सहर महमूद

कैसे कैसे मंज़र मेरी आँखों में आ जाते हैं

सग़ीर अालम

दोस्तो दुर्द पिलाओ कि कड़ी रात कटे

साग़र निज़ामी

तड़प के रात बसर की जो इक मुहिम सर की

सफ़ी लखनवी

जिस वक़्त आँखें ख़्वाब आईना दिल होता है

सफ़दर सिद्दीक़ रज़ी

सहरा में ज़र्रा क़तरा समुंदर में जा मिला

सईदुल ज़फर चुग़ताई

तुम अपने दरिया का रोना रोने आ जाते हो

सईद क़ैस

सोने के दिल मिट्टी के घर पीछे छोड़ आए हैं

सईद क़ैस

ख़ुश्क होंटों की अना माइल-ए-साग़र क्यूँ है

सईद आरिफ़ी

बे-सबब ठीक नहीं घर से निकल कर जाना

सईद आरिफ़ी

शहर के फ़ुट-पाथ पर कुछ चुभते मंज़र देखना

सईद अख़्तर

ज़वाल के आईने में ज़िंदा अक्स

सईद अहमद

होने की इक झलक सी दिखा कर चला गया

सईद अहमद

रश्क-ए-महताब जहाँ-ताब था हर क़र्या-ए-जाँ

सादिक़ नसीम

अपनी आँखों से तो दरिया भी सराब-आसा मिले

सादिक़ नसीम

उन की याद में बहते आँसू ख़ुश्क अगर हो जाएँगे

सादिक़

फ़र्जाम

सादिक़

एक बार फिर

सादिक़

वो चीर के आकाश ज़मीं पर उतर आया

सादिक़

गरचे सहल नहीं लेकिन तेरे कहने पर लाऊँगा

सादिक़

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