उन की याद में बहते आँसू ख़ुश्क अगर हो जाएँगे
सात समुंदर अपनी ख़ाली आँखों में भर लाऊँगा
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ज़हर-ए-बाद
अल्फ़ाज़ की विलादत
दरवाज़े को पीट रहा हूँ पैहम चीख़ रहा हूँ
जिस्म पर खुरदुरी सी छाल उगा
फ़ुर्सत हो तो ये जिस्म भी मिट्टी में दबा दो
अल्फ़ाज़ अल्फ़ाज़ ही हैं
पलंग पर जो किताब ओ सिनान रख देगा
अपने गले पे चलती छुरी का भी ध्यान रख
बिस्तर बिछा के रात वो कमरे में सो गया
और कुछ चारा नहीं
फ़र्जाम
इस घूमती ज़मीन का मेहवर ही तोड़ दो