तुम अपने दरिया का रोना रोने आ जाते हो
हम तो अपने सात समुंदर पीछे छोड़ आए हैं
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Gulzar
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(513) Peoples Rate This
उज़्र हवा ने क्या रक्खा है
अंजाम
चेहरा चेहरा ग़म है अपने मंज़र में
मैं भी अपनी ज़ात में आबाद हूँ
उसी के लुत्फ़ से बस्ती निहाल है सारी
हिज्र तन्हाई के लम्हों में बहुत बोलता है
नज़र में रंग समाए हुए उसी के हैं
अपनी आवाज़ सुनाई नहीं देती मुझ को
तुम से मिलने का बहाना तक नहीं
तआक़ुब
शाम के आसार गीले हैं बहुत