फिर मिरे तआक़ुब में
इक उदास सा चेहरा
ज़ख़्म ज़ख़्म यादों के जब्र की रिदा ओढ़े
हिज्र की तमाज़त में
वस्ल की मसाफ़त में
बे-समर मोहब्बत की बे-निशान गलियों में
नंगे पाँव फिरता है
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(617) Peoples Rate This
हिज्र तन्हाई के लम्हों में बहुत बोलता है
अंजाम
रोज़ हवा में उड़ने की फ़रमाइश है
तुम से मिलने का बहाना तक नहीं
चेहरा चेहरा ग़म है अपने मंज़र में
इंतिज़ार
तुम अपने दरिया का रोना रोने आ जाते हो
अपनी आवाज़ सुनाई नहीं देती मुझ को
उसी के लुत्फ़ से बस्ती निहाल है सारी
मैं भी अपनी ज़ात में आबाद हूँ
नज़र में रंग समाए हुए उसी के हैं
सोने के दिल मिट्टी के घर पीछे छोड़ आए हैं