और तुम नहीं आते
चाँद डूब जाता है
उम्र बीत जाती है
इंतिज़ार की बाज़ी
रात जीत जाती है
जब्र का कड़ा लम्हा
आस का बुझा तारा
शाम-ए-हिज्र का दरिया
मुझ में डूब जाता है
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Wasi Shah
Jaun Eliya
Anwar Masood
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रोज़ हवा में उड़ने की फ़रमाइश है
उज़्र हवा ने क्या रक्खा है
तआक़ुब
उसी के लुत्फ़ से बस्ती निहाल है सारी
अपनी आवाज़ सुनाई नहीं देती मुझ को
तुम से मिलने का बहाना तक नहीं
अंजाम
मैं भी अपनी ज़ात में आबाद हूँ
तुम अपने दरिया का रोना रोने आ जाते हो
चेहरा चेहरा ग़म है अपने मंज़र में
इंतिज़ार
हिज्र तन्हाई के लम्हों में बहुत बोलता है