सागर Poetry (page 13)

थामी हुई है काहकशाँ अपने हाथ से

सरवत हुसैन

सफ़ीना रखता हूँ दरकार इक समुंदर है

सरवत हुसैन

पत्थरों में आइना मौजूद है

सरवत हुसैन

पहनाए-बर-ओ-बहर के महशर से निकल कर

सरवत हुसैन

जब शाम हुई मैं ने क़दम घर से निकाला

सरवत हुसैन

फ़ुरात-ए-फ़ासिला से दजला-ए-दुआ से उधर

सरवत हुसैन

सर झुका लेता था पहले जिस को अक्सर देख कर

सरमद सहबाई

ख़्वाब में मंज़र रह जाता है

सरफ़राज़ ज़ाहिद

आँख ही आँख थी मंज़र भी नहीं था कोई

सरफ़राज़ ख़ालिद

फ़िक्र ओ एहसास के तपते हुए मंज़र तक आ

सरदार सलीम

हो लेने दो बारिश हम भी रो लेंगे

सदार आसिफ़

चराग़ जब मेरा कमरा नापता है

सारा शगुफ़्ता

बदन से पूरी आँख है मेरी

सारा शगुफ़्ता

आँखें दो जुडवाँ बहनें

सारा शगुफ़्ता

ये कैसी बात हुई है कि देख कर ख़ुश है

साक़ी फ़ारुक़ी

मुझ में सात समुंदर शोर मचाते हैं

साक़ी फ़ारुक़ी

तौजीह

साक़ी फ़ारुक़ी

मुहासबा

साक़ी फ़ारुक़ी

मौत की ख़ुशबू

साक़ी फ़ारुक़ी

ज़मानों के ख़राबों में उतर कर देख लेता हूँ

साक़ी फ़ारुक़ी

वो सख़ी है तो किसी रोज़ बुला कर ले जाए

साक़ी फ़ारुक़ी

वो आग हूँ कि नहीं चैन एक आन मुझे

साक़ी फ़ारुक़ी

वहशत दीवारों में चुनवा रक्खी है

साक़ी फ़ारुक़ी

सुर्ख़ चमन ज़ंजीर किए हैं सब्ज़ समुंदर लाया हूँ

साक़ी फ़ारुक़ी

एक दिन ज़ेहन में आसेब फिरेगा ऐसा

साक़ी फ़ारुक़ी

समुंदर की ख़ुश्बू

समीना राजा

वो आरज़ू कि दिलों को उदास छोड़ गई

समद अंसारी

जागते में भी ख़्वाब देखे हैं

सलमान अख़्तर

दाइम सराब इक मिरे अंदर है क्या करूँ

सलमान अख़्तर

चश्म-ए-नम पहले शफ़क़ बन के सँवरना चाहे

सलमा शाहीन

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