छाया Poetry (page 27)

हर लम्हा मर्ग-ओ-ज़ीस्त में पैकार देखना

अब्दुल्लाह जावेद

चमका जो चाँद रात का चेहरा निखर गया

अब्दुल्लाह जावेद

तेरा ही मैं गदा हूँ मेरा तू शाह बस है

अब्दुल वहाब यकरू

ख़ून जब अश्क में ढलता है ग़ज़ल होती है

अब्दुल मन्नान तरज़ी

वो सूरज इतना नज़दीक आ रहा है

अब्दुल हमीद अदम

ग़म-ए-मोहब्बत सता रहा है ग़म-ए-ज़माना मसल रहा है

अब्दुल हमीद अदम

आँखों से तिरी ज़ुल्फ़ का साया नहीं जाता

अब्दुल हमीद अदम

एक ख़ुदा पर तकिया कर के बैठ गए हैं

अब्दुल हमीद

इस तिलिस्म-ए-रोज़-ओ-शब से तो कभी निकलो ज़रा

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

दुआ को हाथ मिरा जब कभी उठा होगा

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

औज-बिन-उनुक़

अब्दुल अहद साज़

हसरत-ए-दीद नहीं ज़ौक़-ए-तमाशा भी नहीं

अब्दुल अहद साज़

ख़ूब इतना था कि दीवार पकड़ कर निकला

अब्बास ताबिश

शायद किसी बला का था साया दरख़्त पर

अब्बास ताबिश

पाँव पड़ता हुआ रस्ता नहीं देखा जाता

अब्बास ताबिश

नक़्श सारे ख़ाक के हैं सब हुनर मिट्टी का है

अब्बास ताबिश

इतना आसाँ नहीं मसनद पे बिठाया गया मैं

अब्बास ताबिश

बदन के चाक पर ज़र्फ़-ए-नुमू तय्यार करता हूँ

अब्बास ताबिश

जब कोई तीर हवादिस की कमाँ से आया

अब्बास रिज़वी

गुज़र गया वो ज़माना वो ज़ख़्म भर भी गए

अब्बास रिज़वी

ज़र्फ़ से बढ़ के हो इतना नहीं माँगा जाता

अब्बास दाना

ये बात सच है कि तेरा मकान ऊँचा है

अब्बास दाना

हर्फ़-ए-शिकवा न लब पे लाओ तुम

अातिश बहावलपुरी

धूप हालात की हो तेज़ तो और क्या माँगो

आसी रामनगरी

ये दौर मुझ से ख़िरद का वक़ार माँगे है

आल-ए-अहमद सूरूर

पाँव पत्तों पे धीरे से धरता हुआ

आदिल रज़ा मंसूरी

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