छाया Poetry (page 25)

दरिया में दश्त दश्त में दरिया सराब है

अहमद ख़याल

हुस्न नजात-दहिन्दा है

अहमद जावेद

एक सूरमा के नाम

अहमद जावेद

कोई जल में ख़ुश है कोई जाल में

अहमद जावेद

शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए

अहमद हुसैन माइल

रू-ए-ताबाँ माँग मू-ए-सर धुआँ बत्ती चराग़

अहमद हुसैन माइल

अपना साया तो मैं दरिया में बहा आया था

अहमद फ़रीद

ये जो इक सैल-ए-फ़ना है मिरे पीछे पीछे

अहमद फ़रीद

मुहासरा

अहमद फ़राज़

मैं और तू

अहमद फ़राज़

उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है

अहमद फ़राज़

मुंतज़िर कब से तहय्युर है तिरी तक़रीर का

अहमद फ़राज़

दिल-गिरफ़्ता ही सही बज़्म सजा ली जाए

अहमद फ़राज़

दीवार-ए-कुहन के ज़ेर-ए-साया

अहमद अज़ीमाबादी

उस पार तो ख़ैर आसमाँ है

अहमद अज़ीमाबादी

मैं फ़क़त इस जुर्म में दुनिया में रुस्वा हो गया

अफ़ज़ल मिनहास

कर्ब के शहर से निकले तो ये मंज़र देखा

अफ़ज़ल मिनहास

नींद आई न खुला रात का बिस्तर मुझ से

अफ़ज़ल गौहर राव

रात, मामूल और हम

आफ़ताब शम्सी

मेला

आफ़ताब शम्सी

आज़ुर्दगी का उस की ज़रा मुझ को पास था

आफ़ताब शम्सी

हिज्र-ज़ाद

आफ़ताब इक़बाल शमीम

जब चाहा ख़ुद को शाद या नाशाद कर लिया

आफ़ताब इक़बाल शमीम

धूप जब ढल गई तो साया नहीं

आफ़ताब हुसैन

किसी निशाँ से अलामत से या सनद से न हो

आफ़ताब अहमद

ख़याल

अफ़रोज़ आलम

जिगर को ख़ून किए दिल को बे-क़रार अभी

अफ़रोज़ आलम

जब अपना साया ही दुश्मन है क्या किया जाए

अफ़रोज़ आलम

वो तुम तक कैसे आता

आदिल मंसूरी

फिर कोई वुसअत-ए-आफ़ाक़ पे साया डाले

आदिल मंसूरी

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