छाया Poetry (page 26)

नज़्म

आदिल मंसूरी

लहू को सुर्ख़ गुलाबों में बंद रहने दो

आदिल मंसूरी

लफ़्ज़ की छाँव में

आदिल मंसूरी

खिड़की अंधी हो चुकी है

आदिल मंसूरी

वुसअत-ए-दामन-ए-सहरा देखूँ

आदिल मंसूरी

वो तुम तक कैसे आता

आदिल मंसूरी

सड़कों पर सूरज उतरा

आदिल मंसूरी

फिर किसी ख़्वाब के पर्दे से पुकारा जाऊँ

आदिल मंसूरी

जलने लगे ख़ला में हवाओं के नक़्श-ए-पा

आदिल मंसूरी

एक क़तरा अश्क का छलका तो दरिया कर दिया

आदिल मंसूरी

वो लम्हा जो मेरा था

अदा जाफ़री

ज़बाँ को हुक्म निगाह-ए-करम को पहचाने

अदा जाफ़री

तमाम हिज्र उसी का विसाल है उस का

अबुल हसनात हक़्क़ी

पोस्टर पर एक ख़बर

अबरार आज़मी

ज़मीं पे आग फ़लक पर धुआँ दिखाई दिया

अबरार आज़मी

उस ने कल भागते लम्हों को पकड़ रक्खा था

अबरार आज़मी

कमरे में धुआँ दर्द की पहचान बना था

अबरार आज़मी

मौत दिल से लिपट गई उस शब

अबरार अहमद

आँखें तरस गई हैं

अबरार अहमद

राह दुश्वार भी है बे-सर-ओ-सामानी भी

अबरार अहमद

कोई सोचे न हमें कोई पुकारा न करे

अबरार अहमद

जाने किस सम्त को भटका साया

आबिद वदूद

कफ़-ए-ख़िज़ाँ पे खिला मैं इस ए'तिबार के साथ

आबिद सयाल

रात

आबिद आलमी

ये मैं हूँ ख़ुद कि कोई और है तआक़ुब में

अब्दुस्समद ’तपिश’

वो बड़ा था फिर भी वो इस क़दर बे-फ़ैज़ था

अब्दुस्समद ’तपिश’

जफ़ा के ज़िक्र पे वो बद-हवास कैसा है

अब्दुस्समद ’तपिश’

आँख थी सूजी हुई और रात भर सोया न था

अब्दुस्समद ’तपिश’

इन काली सड़कों प अक्सर ध्यान आया

अब्दुर्रहीम नश्तर

चट्टान के साए में खड़ा सोच रहा हूँ

अब्दुर्रहीम नश्तर

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