ये मैं हूँ ख़ुद कि कोई और है तआक़ुब में
ये एक साया पस-ए-रहगुज़ार किस का है
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न जाने कौन फ़ज़ाओं में ज़हर घोल गया
कुछ हक़ाएक़ के ज़िंदा पैकर हैं
मैं ने जो कुछ भी लिक्खा है
जफ़ा के ज़िक्र पे वो बद-हवास कैसा है
अगर वो बे-अदब है बे-अदब लिख
अभी तक हौसला ठहरा हुआ है
उसे खिलौनों से बढ़ कर है फ़िक्र रोटी की
वक़्त के दामन में कोई
एक भी चैन का बिस्तर नहीं होने देता
कौन पत्थर उठाए
वो बड़ा था फिर भी वो इस क़दर बे-फ़ैज़ था