कौन पत्थर उठाए
ये शजर बे-समर है
Anwar Masood
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Gulzar
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(864) Peoples Rate This
ताज़ा-दम जवानी रख
कोई कॉलम नहीं है हादसों पर
जहाँ तक पाँव मेरे जा सके हैं
आँख थी सूजी हुई और रात भर सोया न था
अभी तक हौसला ठहरा हुआ है
न जाने कौन फ़ज़ाओं में ज़हर घोल गया
ख़ौफ़-ओ-वहशत बर-सर-ए-बाज़ार रख जाता है कौन
अब निशाना उस की अपनी ज़ात है
जफ़ा के ज़िक्र पे वो बद-हवास कैसा है
क्यूँ वो मिलने से गुरेज़ाँ इस क़दर होने लगे
कुछ हक़ाएक़ के ज़िंदा पैकर हैं