अब निशाना उस की अपनी ज़ात है
लड़ रहा है इक अनोखी जंग वो
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जफ़ा के ज़िक्र पे वो बद-हवास कैसा है
ये मैं हूँ ख़ुद कि कोई और है तआक़ुब में
हवा-ए-तुंद कैसी चल पड़ी है
आँख थी सूजी हुई और रात भर सोया न था
उसे खिलौनों से बढ़ कर है फ़िक्र रोटी की
वही क़ातिल वही मुंसिफ़ बना है
न जाने कौन फ़ज़ाओं में ज़हर घोल गया
क्यूँ वो मिलने से गुरेज़ाँ इस क़दर होने लगे
ख़ौफ़-ओ-वहशत बर-सर-ए-बाज़ार रख जाता है कौन
पत्ते पत्ते से नग़्मा-सरा कौन है
एक भी चैन का बिस्तर नहीं होने देता
अगर वो बे-अदब है बे-अदब लिख