हवा-ए-तुंद कैसी चल पड़ी है
शजर पर एक भी पत्ता नहीं है
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(720) Peoples Rate This
न जाने कौन फ़ज़ाओं में ज़हर घोल गया
जफ़ा के ज़िक्र पे वो बद-हवास कैसा है
मैं भी तन्हा इस तरफ़ हूँ वो भी तन्हा उस तरफ़
कोई कॉलम नहीं है हादसों पर
मैं ने जो कुछ भी लिक्खा है
वही क़ातिल वही मुंसिफ़ बना है
अगर वो बे-अदब है बे-अदब लिख
एक भी चैन का बिस्तर नहीं होने देता
जिस्म के मर्तबान में क्या है
उन के लब पर मिरा गिला ही सही
ये मैं हूँ ख़ुद कि कोई और है तआक़ुब में
वक़्त के दामन में कोई