उन के लब पर मिरा गिला ही सही
याद करने का सिलसिला तो है
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आँख थी सूजी हुई और रात भर सोया न था
कोई कॉलम नहीं है हादसों पर
अभी तक हौसला ठहरा हुआ है
अब निशाना उस की अपनी ज़ात है
अगर वो बे-अदब है बे-अदब लिख
उसे खिलौनों से बढ़ कर है फ़िक्र रोटी की
देख कर मेरी अना किस दर्जा हैरानी में है
एक भी चैन का बिस्तर नहीं होने देता
ये मैं हूँ ख़ुद कि कोई और है तआक़ुब में
जफ़ा के ज़िक्र पे वो बद-हवास कैसा है
वही क़ातिल वही मुंसिफ़ बना है