सब को दिखलाता है वो छोटा बना कर मुझ को
मुझ को वो मेरे बराबर नहीं होने देता
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वो बड़ा था फिर भी वो इस क़दर बे-फ़ैज़ था
जफ़ा के ज़िक्र पे वो बद-हवास कैसा है
उन के लब पर मिरा गिला ही सही
देख कर मेरी अना किस दर्जा हैरानी में है
उसे खिलौनों से बढ़ कर है फ़िक्र रोटी की
एक भी चैन का बिस्तर नहीं होने देता
जिस्म के मर्तबान में क्या है
ये मैं हूँ ख़ुद कि कोई और है तआक़ुब में
मैं भी तन्हा इस तरफ़ हूँ वो भी तन्हा उस तरफ़
ताज़ा-दम जवानी रख
ख़ौफ़-ओ-वहशत बर-सर-ए-बाज़ार रख जाता है कौन
कौन पत्थर उठाए