कुछ हक़ाएक़ के ज़िंदा पैकर हैं
लफ़्ज़ में क्या बयान में क्या है
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जफ़ा के ज़िक्र पे वो बद-हवास कैसा है
आँख थी सूजी हुई और रात भर सोया न था
ये मैं हूँ ख़ुद कि कोई और है तआक़ुब में
मैं ने जो कुछ भी लिक्खा है
अब निशाना उस की अपनी ज़ात है
मैं भी तन्हा इस तरफ़ हूँ वो भी तन्हा उस तरफ़
देख कर मेरी अना किस दर्जा हैरानी में है
सब को दिखलाता है वो छोटा बना कर मुझ को
वो बड़ा था फिर भी वो इस क़दर बे-फ़ैज़ था
अभी तक हौसला ठहरा हुआ है
ख़ौफ़-ओ-वहशत बर-सर-ए-बाज़ार रख जाता है कौन