सजा Poetry (page 10)

बे-ज़मीरों के कभी झाँसे में मैं आता नहीं

इबरत बहराईची

इस शहर के लोगों पे ख़त्म सही ख़ु-तलअ'ती-ओ-गुल-पैरहनी

इब्न-ए-इंशा

इतनी सी इस जहाँ की हक़ीक़त है और बस

हुसैन सहर

वो आलम है कि हर मौज-ए-नफ़स है रूह पर भारी

हुरमतुल इकराम

गो दाग़ हो गए हैं वो छाले पड़े हुए

होश तिर्मिज़ी

दिल को ग़म रास है यूँ गुल को सबा हो जैसे

होश तिर्मिज़ी

आईना-दर-आईना

हिमायत अली शाएर

मेरा शुऊ'र मुझ को ये आज़ार दे गया

हिमायत अली शाएर

इक़रार है कि दिल से तुम्हें चाहते हैं हम

हसरत मोहानी

तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए

हसरत मोहानी

है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भी

हसरत मोहानी

तिरी मदद का यहाँ तक हिसाब देना पड़ा

हसीब सोज़

इस दर्जा मेरी ज़ात से उस को हसद हुआ

हसन रिज़वी

आँखों में बस रहा है अदा के बग़ैर भी

हसन नईम

कोई ग़मगीं कोई ख़ुश हो कर सदा देता रहा

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

आइने से न डरो अपना सरापा देखो

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

ज़िंदगी अब रहे ख़ता कब तक

हरी मेहता

काबा-ए-दिल को अगर ढाइएगा

हक़ीर

गर्दिश की रक़ाबत से झगड़े के लिए था

हनीफ़ तरीन

तुम ख़ुद ही मोहब्बत की हर इक बात भुला दो

हनीफ़ अख़गर

साँस लेने के लिए ताज़ा हवा भेजी है

हामिद सरोश

सूरज सा भी तारा हो ज़मीं सी भी ज़मीं हो

हामिद सलीम

ये जफ़ाओं की सज़ा है कि तमाशाई है तू

हामिद मुख़्तार हामिद

एक इंसान हूँ इंसाँ का परस्तार हूँ मैं

हामिद मुख़्तार हामिद

उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी

हकीम नासिर

ज़िंदगी को न बना लें वो सज़ा मेरे बाद

हकीम नासिर

जब से तू ने मुझे दीवाना बना रक्खा है

हकीम नासिर

सारे मामूलात में इक ताज़ा गर्दिश चाहिए

हकीम मंज़ूर

मिरे वजूद की दुनिया में है असर किस का

हकीम मंज़ूर

तुम्हारे इश्क़ में किस किस तरह ख़राब हुए

हैदर क़ुरैशी

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