सजा Poetry (page 12)

पत्थर

ग़ज़नफ़र

छुपा है कर्ब-ए-मुसलसल हवा के लहजे में

ग़यास अंजुम

जुनूँ में देर से ख़ुद को पुकारता हूँ मैं

ग़नी एजाज़

ना-कर्दा गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद

ग़ालिब

हद चाहिए सज़ा में उक़ूबत के वास्ते

ग़ालिब

भागे थे हम बहुत सो उसी की सज़ा है ये

ग़ालिब

शबनम ब-गुल-ए-लाला न ख़ाली ज़-अदा है

ग़ालिब

निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की

ग़ालिब

धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव

ग़ालिब

दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं

ग़ालिब

है जो भी जज़ा सज़ा अता हो

गौहर होशियारपुरी

एहसास-ए-जुर्म जान का दुश्मन है 'जाफ़री'

फ़ुज़ैल जाफ़री

दिल मुतमइन है हर्फ़-ए-वफ़ा के बग़ैर भी

फ़ुज़ैल जाफ़री

बा'द मुद्दत के ख़याल-ए-मय-ओ-मीना आया

फ़ितरत अंसारी

ज़ालिम है वो ऐसा कि जफ़ा भी नहीं करता

फ़िरदौस गयावी

मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले

फ़िराक़ गोरखपुरी

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

फ़िराक़ गोरखपुरी

मिल रही है मुझे ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा

फ़े सीन एजाज़

अलमिया-ए-नक़्द

फ़े सीन एजाज़

आँख और नींद के रिश्ते मुझे वापस कर दे

फ़े सीन एजाज़

पड़ा था लिखना मुझे ख़ुद ही मर्सिया मेरा

फ़रियाद आज़र

दिल की ये आग बुझा दी किस ने

फ़र्रुख़ जाफ़री

अबस ही महव-ए-शब-ओ-रोज़ वो दुआ में था

फ़र्रुख़ जाफ़री

होने वाला था इक हादसा रह गया

फ़ारूक़ शफ़क़

मातम-ए-नीम-ए-शब

फ़ारूक़ नाज़की

नज़्म

फ़ारूक़ मुज़्तर

उस के होंटों पे बद-दुआ' भी नहीं

फ़ारूक़ बख़्शी

ये वक़्त ज़िंदगी की अदाएँ भी ले गया

फ़ारूक़ अंजुम

दिल के घाव जब आँखों में आते हैं

फ़ारिग़ बुख़ारी

कोई अहद-ए-वफ़ा भूला हुआ हूँ

फ़रहत नदीम हुमायूँ

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