सजा Poetry (page 14)
देख जुर्म-ओ-सज़ा की बात न कर
द्वारका दास शोला
कहते न थे हम 'दर्द' मियाँ छोड़ो ये बातें
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
कथार्सिस
दानियाल तरीर
चश्म-ए-वा ही न हुई जल्वा-नुमा क्या होता
दानियाल तरीर
दिल था बे-कैफ़ मोहब्बत की ख़ता से पहले
दानिश फ़राही
ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा
दाग़ देहलवी
शब भी है वही हम भी वही तुम भी वही हो
बुशरा एजाज़
दिल में है तलब और दुआ और तरह की
बुशरा एजाज़
जब ख़िज़ाँ आई चमन में सब दग़ा देने लगे
बूम मेरठी
अगर दुश्मन की थोड़ी सी मरम्मत और हो जाती
बूम मेरठी
फ़साद-ए-दुनिया मिटा चुके हैं हुसूल-ए-हस्ती मिटा चुके हैं
भारतेंदु हरिश्चंद्र
वो और तसल्ली मुझे दें उन की बला दे
बेख़ुद देहलवी
ख़ुदा करे मिरा मुंसिफ़ सज़ा सुनाने पर
बेकल उत्साही
उदास काग़ज़ी मौसम में रंग ओ बू रख दे
बेकल उत्साही
तो पहले मेरा ही हाल-ए-तबाह लिख लीजे
बेकल उत्साही
मोहब्बत की इंतिहा चाहता हूँ
बासित भोपाली
मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे
बशीर बद्र
वक़्त रस्ते में खड़ा है कि नहीं
बाक़ी सिद्दीक़ी
सज़ा
बाक़र मेहदी
नई जुस्तुजू का अलमिया
बाक़र मेहदी
हमारे ब'अद
बाक़र मेहदी
मैं भाग के जाऊँगा कहाँ अपने वतन से
बाक़र मेहदी
किसी पे कोई भरोसा करे तो कैसे करे
बाक़र मेहदी
दर्द-ए-दिल आज भी है जोश-ए-वफ़ा आज भी है
बाक़र मेहदी
किरदार ही से ज़ीनत-ए-अफ़्लाक हो गए
बनो ताहिरा सईद
मिले अब के तो रोए टूट कर हम
बकुल देव
ये किस की याद का दिल पर रफ़ू था
बकुल देव
कहता है यार जुर्म की पाते हो तुम सज़ा
बहराम जी
ग़मगीं नहीं हूँ दहर में तो शाद भी नहीं
बहराम जी
दमक उठी है फ़ज़ा माहताब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
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