कहता है यार जुर्म की पाते हो तुम सज़ा
इंसाफ़ अगर नहीं है तो बे-दाद भी नहीं
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Rahat Indori
Parveen Shakir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(851) Peoples Rate This
यार को हम ने बरमला देखा
रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-जाँ में बुतों का पड़ गया
ग़मगीं नहीं हूँ दहर में तो शाद भी नहीं
पता मिलता नहीं उस बे-निशाँ का
है मुसलमाँ को हमेशा आब-ए-ज़मज़म की तलाश
ज़ाहिरी वाज़ से है क्या हासिल
रखा सर पर जो आया यार का ख़त
नहीं दुनिया में आज़ादी किसी को
नहीं बुत-ख़ाना ओ काबा पे मौक़ूफ़
कुफ़्र एक रंग-ए-क़ुदरत-ए-बे-इंतिहा में है
हो चुका वाज़ का असर वाइज़