पता मिलता नहीं उस बे-निशाँ का
लिए फिरता है क़ासिद जा-ब-जा ख़त
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नहीं बुत-ख़ाना ओ काबा पे मौक़ूफ़
ढूँढ कर दिल में निकाला तुझ को यार
हम न बुत-ख़ाने में ने मस्जिद-ए-वीराँ में रहे
हो चुका वाज़ का असर वाइज़
यार को हम ने बरमला देखा
रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-जाँ में बुतों का पड़ गया
कब तसव्वुर यार-ए-गुल-रुख़्सार का फ़े'अल-ए-अबस
ज़ाहिरी वाज़ से है क्या हासिल
इश्क़ में दिल से हम हुए महव तुम्हारे ऐ बुतो
नहीं दुनिया में आज़ादी किसी को
किया है संदलीं-रंगों ने दर बंद