शब भी है वही हम भी वही तुम भी वही हो
है अब के मगर अपनी सज़ा और तरह की
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पंछी ते परदेसी.....
उन्हें ढूँडो
मिरे नुक्ता-दाँ तिरा फ़हम अपनी मिसाल है
मिरी अपनी और उस की आरज़ू में फ़र्क़ ये था
मंज़रों के दरमियाँ मंज़र बनाना चाहिए
जब राख से उट्ठेगा कभी इश्क़ का शोला
मैं जब ख़ुद से बिछड़ती हूँ
मेरे ख़ामोश ख़ुदा
ये शहर-ए-ना-रसाई है
मिरी रात मेरा चराग़ मेरी किताब दे
तुम्हारी चुप मिरा आईना है