जब राख से उट्ठेगा कभी इश्क़ का शोला
फिर पाएगी ये ख़ाक शिफ़ा और तरह की
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Gulzar
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1046) Peoples Rate This
मंज़रों के दरमियाँ मंज़र बनाना चाहिए
मोहब्बत में कोई सदमा उठाना चाहिए था
शब भी है वही हम भी वही तुम भी वही हो
मिरे नुक्ता-दाँ तिरा फ़हम अपनी मिसाल है
पंछी ते परदेसी.....
दिल में है तलब और दुआ और तरह की
अपने सारे रास्ते अंदर की जानिब मोड़ कर
उन्हें ढूँडो
मैं जब ख़ुद से बिछड़ती हूँ
मिरी अपनी और उस की आरज़ू में फ़र्क़ ये था
मेरे ख़ामोश ख़ुदा