अपने सारे रास्ते अंदर की जानिब मोड़ कर
मंज़िलों का इक निशाँ बाहर बनाना चाहिए
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ये शहर-ए-ना-रसाई है
मिरी रात मेरा चराग़ मेरी किताब दे
दिल में है तलब और दुआ और तरह की
मोहब्बत में कोई सदमा उठाना चाहिए था
मंज़रों के दरमियाँ मंज़र बनाना चाहिए
मिरे नुक्ता-दाँ तिरा फ़हम अपनी मिसाल है
पंछी ते परदेसी.....
शब भी है वही हम भी वही तुम भी वही हो
मैं जब ख़ुद से बिछड़ती हूँ
तुम्हारी चुप मिरा आईना है
मेरे ख़ामोश ख़ुदा