एहसास-ए-जुर्म जान का दुश्मन है 'जाफ़री'
है जिस्म तार तार सज़ा के बग़ैर भी
Gulzar
Wasi Shah
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(740) Peoples Rate This
आठों पहर लहू में नहाया करे कोई
तेज़ आँधी रात अँधयारी अकेला राह-रौ
मिज़ाज अलग सही हम दोनों क्यूँ अलग हों कि हैं
घर से बाहर नहीं निकला जाता
चुप रहे देख के उन आँखों के तेवर आशिक़
है इबारत जो ग़म-ए-दिल से वो वहशत भी न थी
रिश्ता जिगर का ख़ून-ए-जिगर से नहीं रहा
निभेगी किस तरह दिल सोचता है
दिल यूँ तो गाह गाह सुलगता है आज भी
वो मौज-ए-ख़ुनुक शहर-ए-शरर तक नहीं आई
दश्त-ए-तन्हाई में जीने का सलीक़ा सीखिए
लफ़्ज़ों का साएबान बना लेने दीजिए