दिल यूँ तो गाह गाह सुलगता है आज भी
मंज़र मगर वो रक़्स-ए-शरर का नहीं रहा
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Wasi Shah
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(755) Peoples Rate This
बोसे बीवी के हँसी बच्चों की आँखें माँ की
आतिश-फ़िशाँ ज़बाँ ही नहीं थी बदन भी था
मैं उजड़ा शहर था तपता था दश्त के मानिंद
मिज़ाज अलग सही हम दोनों क्यूँ अलग हों कि हैं
सुब्ह तक हम रात का ज़ाद-ए-सफ़र हो जाएँगे
भूले-बिसरे हुए ग़म फिर उभर आते हैं कई
ख़ुद लफ़्ज़ पस-ए-लफ़्ज़ कभी देख सके भी
इक ख़ौफ़ सा दरख़्तों पे तारी था रात-भर
तिरी बदन में मेरे ख़्वाब मुस्कुराते हैं
आठों पहर लहू में नहाया करे कोई
हर सम्त लहू-रंग घटा छाई सी क्यूँ है
चेहरे मकान राह के पत्थर बदल गए