मिज़ाज अलग सही हम दोनों क्यूँ अलग हों कि हैं
सराब ओ आब में पोशीदा क़ुर्बतें क्या क्या
Wasi Shah
Javed Akhtar
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Habib Jalib
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Faiz Ahmad Faiz
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Parveen Shakir
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दिल यूँ तो गाह गाह सुलगता है आज भी
ज़िद में दुनिया की बहर-हाल मिला करते थे
बोसे बीवी के हँसी बच्चों की आँखें माँ की
घर से बाहर नहीं निकला जाता
नौमीद करे दिल को न मंज़िल का पता दे
कोई मंज़िल आख़िरी मंज़िल नहीं होती 'फ़ुज़ैल'
कैसा मकान साया-ए-दीवार भी नहीं
मैं और मिरी ज़ात अगर एक ही शय हैं
ये सच है हम को भी खोने पड़े कुछ ख़्वाब कुछ रिश्ते
मैं उजड़ा शहर था तपता था दश्त के मानिंद
आठों पहर लहू में नहाया करे कोई
इक ख़ौफ़ सा दरख़्तों पे तारी था रात-भर