आठों पहर लहू में नहाया करे कोई
यूँ भी न अपने दर्द को दरिया करे कोई
Parveen Shakir
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
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Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Gulzar
Habib Jalib
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हर सम्त लहू-रंग घटा छाई सी क्यूँ है
घर से बे-ज़ार हूँ कॉलेज में तबीअ'त न लगे
सर-ए-सहरा-ए-दुनिया फूल यूँ ही तो नहीं खिलते
दश्त-ए-तन्हाई में जीने का सलीक़ा सीखिए
साहब दिलों से राह में आँखें मिला के देख
ये सच है हम को भी खोने पड़े कुछ ख़्वाब कुछ रिश्ते
तिरी बदन में मेरे ख़्वाब मुस्कुराते हैं
गिर भी जाएँ तो न मिस्मार समझिए हम को
तअल्लुक़ात का तन्क़ीद से है याराना
तेज़ आँधी रात अँधयारी अकेला राह-रौ
रुख़ हवाओं के किसी सम्त हों मंज़र हैं वही
घर से बाहर नहीं निकला जाता