मैं और मिरी ज़ात अगर एक ही शय हैं
फिर बरसों से दोनों में सफ़-आराई सी क्यूँ है
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(736) Peoples Rate This
आठों पहर लहू में नहाया करे कोई
आतिश-फ़िशाँ ज़बाँ ही नहीं थी बदन भी था
तेज़ आँधी रात अँधयारी अकेला राह-रौ
जो भर भी जाएँ दिल के ज़ख़्म दिल वैसा नहीं रहता
रुख़ हवाओं के किसी सम्त हों मंज़र हैं वही
कोई मंज़िल आख़िरी मंज़िल नहीं होती 'फ़ुज़ैल'
इक ख़ौफ़ सा दरख़्तों पे तारी था रात-भर
गिर भी जाएँ तो न मिस्मार समझिए हम को
एहसास-ए-जुर्म जान का दुश्मन है 'जाफ़री'
चमकते चाँद से चेहरों के मंज़र से निकल आए
दीवाने इतने जम्अ' हुए शहर बन गया